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handy Muhavare

 * पावस देखि रहीम मनकोइल साधे मौनअब दादुर बक्‍ता भएहमको पूछत कौन. 

* आओ, आओ वैशाखनंदन. !! किसी को संस्कृत में गधा कहना।
* नेकी नौ कोसबदी सौ कोस
* पट्ठों की जान गईपहलवान का दांव ठहरा. 
 पड़ोसी के घर में बरसेगा तो बौछार यहाँ भी आयेगी।
पत्ता खटकाबंदा सटका.    डरपोक लोगों के लिए. पत्ता खड़कने की आवाज सुन कर ही सरक लेते हैं.
पराई आसानित उपवासा
* पराई पत्तल का भात मीठा। मनुष्य को हमेशा यह प्रतीत होता है कि दूसरे लोग उससे अधिक सुखी हैं.
 पराए धन पर लक्ष्मी नारायण।  दूसरों का धन बांट कर अपने को बड़ा दानी सिद्ध करना.
पराया खाइए गा बजाअपना खाइए सांकल लगा.  
पहले आत्माफिर परमात्मा-
भात खवाय के पीछे मारी लात। -  पहले दिखावटी सम्मान कर के फिर अपमान करना.
 पांचो उँगलियाँ घी में.    अत्यधिक लाभ की स्थिति. घी के डब्बे में से कम घी निकालने के लिए एक उंगली से घी निकाला जाता है. अगर कोई पाँचों उंगलियाँ डाल कर घी निकाल रहा हो तो इसका मतलब वह बहुत सम्पन्न है. किसी की सम्पन्नता देख कर कोई व्यक्ति ईर्ष्यावश उस से कहता है कि भई तुम्हारी तो पाँचों उँगलियाँ घी में हैंतो वह जवाब में कहता है – हाँ भई पाँचों उँगलियाँ घी मेंसर कढ़ाई में और पैर चूल्हे में हैं (क्योंकि कि उसे धन कमाने के लिए बहुत कष्ट उठाने पड़ते हैं).    
* पांडे जी पछताएंगे,  वोई चने की खाएंगे।
* पाक रहबेबाक रह.        पाप से दूर रह कर पवित्र मन से काम कीजिए तो आप निडर हो कर काम कर सकते हैं.
पानी मथे घी नहीं निकलता।
*  पानी में आग लगाय लुगाई। 
 पानी में मछली के नौ नौ हिस्सा।
पासा पड़े अनाड़ी जीते।
 पुण्य की जड़ सदा हरी.        पुन्य (परोपकार) करने से व्यक्ति की सदा उन्नति होती है.
* पूछी खेत की बताई खलियान की।      पूछी जमीन कीबताई आसमान की।          
*पूछी न काछीमैं दुल्हन की चाची. जबरदस्ती किसी से रिश्ता जोड़ना. मान न मान मैं तेरा मेहमान.
*    पूत भए सयानेदुःख भए बिराने.      पुत्र सयाने हो जाते हैं तो आदमी के दुःख दूर हो जाते हैं.
*पूत कारज करियो सोईजामें हंडिया खुदबुद होई.
 पैसा करे कामबीबी करे सलाम।  
पैसे की आने की एक राहजाने की चार।                                                         
प्यासे को पिलाओ पानीचाहे हो जाए कुछ हानी।
 फाटे पीछे न मिलें (जुड़ें)मन मानिक औ दूध.
फ़ारस गए फ़ारसी पढ़ आए बोले वहीँ की बानीआब आब कह पुतुआ मर गए खटिया तरे   धरो रहो पानी।    
फ़िक्र से हाथी भी घुल जाता है.            चिंता से हाथी भी दुबला हो 
* फिजूलखर्ची से फकीरी.   जो आज फिजूलखर्ची कर रहा है वह कल फकीर बनने पर मजबूर हो जाएगा.
   फिसल पड़े तो हर गंगा।
फूहड़ का मालसराह सराह खाइए. मूर्ख व्यक्ति की तारीफ़ करते जाइए और उसका माल खाते जाइए.
फ़ोकट का चन्दनघिस मेरे नंदन। कोई कीमती चीज़ मुफ्त में मिल जाए तो आदमी उस की कद्र नहीं करता.
 बंदर नाचेऊँट जल मरे. 
बचाया सो कमाया. धन बचाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना धन कमाना. क्रिकेट के खेल में भी कहते हैं runs saved are runs made.
 बटेऊ खांड मांडे खाएकुतिया की जीभ जले
बड़े न बूड़न देत हैं जाकी पकड़ी बांहजैसे लोहा नाव में तिरत रहे जल मांह.
बरसें कमगरजें ज्यादा.
*   बस कर मियाँ बस करदेखा तेरा लश्कर.   जो अपनी बहादुरी की झूठी शान बघार रहा हो उससे कही जाने वाली कहावत.
*   बा अदब बा नसीबबे अदब बे नसीब।
 * बाँबी में हाथ तू डाल मंत्र मैं पढूं। 
*बातन हाथी पाइएबातन हाथी पाँव। (बातों हाथी पायंबातों हाथी पायं).           एक ही बात को कहने का तरीका इतना फर्क हो सकता है कि राजा खुश हो कर हाथी इनाम में दे दे या नाराज हो कर हाथी के पैर तले कुचलवा दे.
*    बातों के राजा नहीं होय काजा.     
*   बाप न मारी मेंढकीबेटा तीरंदाज।
* बारह गाँव का चौधरीअस्सी गांव का रायअपने काम न आए तो ऐसी तैसी में जाए।  अँगरेज़ लोग अपने चाटुकार लोगों को तरह तरह के इनाम और ओहदे दिया करते थे. किसी चाटुकार को चौधरी साहब की पदवी दे कर बारह गाँव की जमींदारी दे दी तो उस से बड़े चाटुकार को अस्सी गाँव का पट्टा दे कर राय साहब बना दिया. कहावत में कहा गया है कि कोई कितना भी बड़ा आदमी क्यों न हो अगर हमारे काम नहीं आता तो ऐसी तैसी में जाए.
* बिन हिम्मत किस्मत नहीं। 
*बीज बोया नहींखेत का दुःख. 
*   बुढ़िया मिर्ची की पुड़िया.       लड़ाकू बुढ़िया के लिए.
* बुद्धि बिना बल बेकार.        कोई कितना भी बलवान क्यों न हो अगर उसमें बुद्धि न हो तो सब बेकार है. शेरहाथीघोड़ा कितने भी बलवान क्यों न होंमनुष्य अपनी बुद्धि से उन्हें वश में कर लेता है.
*जो मिल गया वो  मिट्टी, जो खो गया वो सोनो।
*  बूंद बूंद सों घट भरेटपकत रीतो होए।    
*बड़ों की सीखकरे काम को ठीक. 
*बेकार न बैठ कुछ किया करकपड़े ही उधेड़ कर सिया कर
*  बेगानी खेती पर झींगुर नाचे. दूसरे की चीज़ पर जबरदस्ती कब्जा करने वालों के लिए.
* बेटा एक कुल की लाज रखता है और बेटी दो कुल की।  
बैठी बुढ़िया मंगल गाए. समझदार आदमी कभी खाली नहीं बैठता.
 ब्याह नहीं किया तो क्याबारात तो गए हैं.कोई कार्य हमें स्वयं करने का अनुभव नहीं है तो क्या हुआ हमने औरों को करते देख कर ही सीख लिया है.
ब्याह पीछे पत्तल भारी।किसी बड़े कार्य में आप कितना भी खर्च कर लें उस के बाद छोटे छोटे खर्च भी भारी लगते हैं. विवाह में चाहे हजार लोगों को खिला दिया हो पर उसके बाद एक आदमी को भोजन कराना भी भारी लगता है.
*भले के भाईबुरे के जंवाई.  
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श्री राम तारक मंत्र

  श्री राम तारक मंत्र     राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।   सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने॥ – श्रीरामरक्षास्तोत्रम्   इस मंत्र को   श्री राम तारक मंत्र   भी कहा जाता है। और इसका जाप , सम्पूर्ण विष्णु सहस्त्रनाम या विष्णु के 1000 नामों के जाप के समतुल्य है। यह मंत्र   श्रीरामरक्षास्तोत्रम्   के नाम से भी जाना जाता है।   संबंधित कथा: एक बार भूतभावन भगवान शिव ने अपनी प्राणवल्लभा पार्वती जी से अपने ही साथ भोजन करने का अनुरोध किया। भगवती पार्वती जी ने यह कहकर टाला कि वे विष्णुसहस्रनाम का पाठ कर रही हैं। थोड़ी देर तक प्रतीक्षा करके शिवजी ने जब पुनः पार्वती जी को बुलाया तब भी पार्वती जी ने यही उत्तर दिया कि वे विष्णुसहस्रनाम के पाठ के विश्राम के पश्चात् ही आ सकेंगी। शिव जी को शीघ्रता थी। भोजन ठण्डा हो रहा था। अतः भगवान भूतभावन ने कहा- पार्वति! राम राम कहो। एक बार राम कहने से विष्णुसहस्रनाम का सम्पूर्ण फल मिल जाता है। क्योंकि श्रीराम नाम ही विष्णु सहस्रनाम के तुल्य है। इस प्रकार शिवजी के मुख से   राम   इस दो अक्षर के नाम का विष्णुसहस्रनाम के समान सुनकर   राम   इस द्व्यक
1 * देव दनुज नर नाग खग प्रेत पितर गंधर्ब। बंदउँ किंनर रजनिचर कृपा करहु अब सर्ब॥ भावार्थ:- देवता, दैत्य, मनुष्य, नाग, पक्षी, प्रेत, पितर, गंधर्व, किन्नर और निशाचर सबको मैं प्रणाम करता हूँ। अब सब मुझ पर कृपा कीजिए॥ 2.  * करन चहउँ रघुपति गुन गाहा। लघु मति मोरि चरित अवगाहा॥ सूझ न एकउ अंग उपाऊ। मन मति रंक मनोरथ राउ॥3॥ भावार्थ:- मैं श्री रघुनाथजी के गुणों का वर्णन करना चाहता हूँ, परन्तु मेरी बुद्धि छोटी है और श्री रामजी का चरित्र अथाह है। इसके लिए मुझे उपाय का एक भी अंग अर्थात्‌ कुछ (लेशमात्र) भी उपाय नहीं सूझता। मेरे मन और बुद्धि कंगाल हैं, किन्तु मनोरथ राजा है॥3॥ 3 * जनकसुता जग जननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की॥ ताके जुग पद कमल मनावउँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ॥4॥ भावार्थ:- राजा जनक की पुत्री, जगत की माता और करुणा निधान श्री रामचन्द्रजी की प्रियतमा श्री जानकीजी के दोनों चरण कमलों को मैं मनाता हूँ, जिनकी कृपा से निर्मल बुद्धि पाऊँ॥4॥ * बंदउँ नाम राम रघुबर को। हेतु कृसानु भानु हिमकर को॥ बिधि हरि हरमय बेद प्रान सो। अगुन अनूपम गुन निधान सो॥1॥ भावार्थ:- मैं श्री र
  प्रेरक कहानी: महिमा राम राम की     एक आदमी बर्फ बनाने वली कम्पनी में काम करता था। एक दिन कारखाना बन्द होने से पहले, अकेला फ्रिज करने वाले कमरे का चक्कर लगाने गया तो गलती से दरवाजा बंद हो गया। और वह अंदर बर्फ वाले हिस्से में फंस गया, छुट्टी का वक़्त था और सब काम करने वाले लोग घर जा रहे थे। किसी ने भी अधिक ध्यान नहीं दिया की कोई अंदर फंस गया है। वह समझ गया की दो-तीन घंटे बाद उसका शरीर बर्फ बन जाएगा अब जब मौत सामने नजर आने लगी तो , भगवान को सच्चे मन से याद करने लगा। अपने कर्मों की क्षमा मांगने लगा और भगवान से कहा कि प्रह्लाद को तुमने अग्नि से बचाया , अहिल्या को पत्थर से नारी बनाया , शबरी के जुठे बेर खाकर उसे स्वर्ग में स्थान दिया। प्रभु अगर मैंने जिंदगी में कोई एक काम भी मानवता व धर्म का किया है तो मुझे यहाँ से बाहर निकालो। मेरे बीवी बच्चे मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे। मैं इकलौता ही अपने घर में कमाने वाला हूं। मैं पुरे जीवन आपके इस उपकार को याद रखूंगा और इतना कहते कहते उसकी आंखों से आंसू निकलने लगे। कुछ समय ही गुज़रा था कि अचानक फ़्रीजर रूम में खट खट की आवाज हुई। दरवाजा खुला चौकीद