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Showing posts from 2020

राम राम

  भजन करो उस रब का जो दाता हैं कुल सब का कबीर, अक्षर पुरुष एक पेड़ है निरंजन वाकी डार । त्रिदेवा शाखा भए पात रूप संसार ।। कबीर एकै साधै, सब सधे सब साधे सब जाय । माली सींचे मूल को, फलै फूलै अघाय ।।

राम राम

सीता विवाह और राम का राज्याभिषेक दोनों ही शुभ मुहूर्त में किये गए थे। फिर भी न वैवाहिक जीवन सफल हुआ न ही राज्याभिषेक । और जब इसका जवाब वशिष्ठ मुनि से पुछा गया तो उन्होंने कहा- सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखि कहेहुँ मुनिनाथ । लाभ हानि जीवन मरण, यश अपयश विधि हाथ ।। जय श्री राम।।

परदोष दर्शन भी एक बड़ा पाप है

परदोष दर्शन भी एक बड़ा पाप है एक गाँव में मन्दिर में एक संन्यासी रहते थे। उस मंदिर के ठीक सामने ही एक वेश्या का मकान था। वेश्या के यहाँ रात−दिन लोग आते−जाते रहते थे। यह देखकर संन्यासी मन ही मन कुड़ता रहता। एक दिन वह अपने को नहीं रोक सका और उस वेश्या को बुलावा भेजा। उसके आते ही फटकारते हुए कहा—‟तुझे शर्म नहीं आती पापिन, दिन रात पाप करती रहती है। मरने पर तेरी क्या गति होगी?” संन्यासी की बात सुनकर वेश्या को बड़ा दुःख हुआ। वह मन ही मन पश्चाताप करती भगवान से प्रार्थना करती अपने पाप कर्मों के लिए क्षमा याचना करती। बेचारी कुछ जानती नहीं थी। बेबस उसे पेट के लिए वेश्यावृत्ति करनी पड़ती किन्तु दिन रात पश्चाताप और ईश्वर से क्षमा याचना करती रहती। उस संन्यासी ने यह हिसाब लगाने के लिए कि उसके यहाँ कितने लोग आते हैं एक−एक पत्थर गिनकर रखने शुरू कर दिये। जब कोई आता एक पत्थर उठाकर रख देता। इस प्रकार पत्थरों का बड़ा भारी ढेर लग गया तो संन्यासी ने एक दिन फिर उस वेश्या को बुलाया और कहा “पापिन? देख तेरे पापों का ढेर? यमराज के यहाँ तेरी क्या गति होगी, अब तो पाप छोड़।” पत्थरों का ढेर देखकर अब तो वेश्या काँप ग

मुहावरे और उनका प्रयोग

  भाषा को सशक्त एवं प्रवाहमयी बनाने के लिए लोकोक्तियों एवं मुहावरों का प्रयोग किया जाता है। वार्तालाप के बीच में इनका प्रयोग बहुत सहायक होता है। कभी-कभी तो मात्र   मुहावरे अथवा लोकोक्तियों के कथन से ही बात बहुत अधिक स्पष्ट हो जाती है और वक्ता का उद्देश्य भी सिद्ध हो जाता है। इनके प्रयोग से हास्य , क्रोध , घृणा , प्रेम , ईर्ष्या आदि भावों को सफलतापूर्वक प्रकट किया जा सकता है। लोकोक्तियों और मुहावरों का प्रयोग करने से भाषा में निम्नलिखित गुणों की वृद्धि होती है। (1) वक्ता का आशय कम-से-कम शब्दों में स्पष्ट हो जाता है। (2) वक्ता अपने हृदयस्थ भावों को कम-से-कम शब्दों में प्रभावपूर्ण ढंग से सफलतापूर्वक अभिव्यक्त कर देता है। (3) भाषा सबल , सशक्त एवं प्रभावोत्पादक बन जाती है। (4) भाषा की व्यंजना-शक्ति का विकास होता है। 1. अँगारे बरसना — अत्यधिक गर्मी पड़ना। जून मास की दोपहरी में अंगारे बरसते प्रतीत होते हैं। 2. अंगारों पर पैर रखना-कठिन कार्य करना। युद्ध के मैदान में हमारे सैनिकों ने अंगारों पर पैर रखकर विजय प्राप्त की। 3. अँगारे सिर पर धरना — विपत्ति मोल लेना। सोच-समझकर काम करना